Tuesday, November 4, 2008

दंगे


दंगे



दावानल की तरह

होते हैं

दंगे

जला डालते हैं

भाईचारा, एकता और

राष्‍ट्रधर्म

बॉंट देते हैं

एक को

अनेक ख़ानों में

और

छोड़ जाते हैं

जली हुई

मानवता की

राख ।

.............................

04/11/1996

14 comments:

ravindra vyas said...

प्रिय सुनील, आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हूं। मुझे खुशी हुई कि आप ब्लॉगर हैं। इस प्यारी दुनिया में आपका स्वागत है।

Suneel R. Karmele said...

रवि‍न्‍द्र जी, दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाऍं।
एक दो दि‍न पहले ही युनुस भाई से आपके और आपके ब्‍लॉग हरा कोना के बारे में चर्चा हुई थी। और अभी ब्‍लॉग पर अपनी रचना पोस्‍ट करने से पहले भी आपके बारे में सोच रहा था। अच्‍छी टेलीपैथी है। और परि‍णाम कि‍ आपकी टि‍प्‍पणी मुझे मि‍ल गई, धन्‍यवाद बहुत बहुत।

कंचन सिंह चौहान said...

hmmm sahi to kaha hai aap ne....!

Udan Tashtari said...

बिल्कुल सही कहा!!!

sandhyagupta said...

Achchi lagi aapki rachnayen.

guptasandhya.blogspot.com

sandhyagupta said...

Achchi lagi aapki rachnayen.Likhte rahiye.

guptsandhya.blogspot.com

Girish Kumar Billore said...

सत्योद्घाटन
अच्छा कलेवर
साज़-सज्जा बेहतरीन !!

योगेन्द्र मौदगिल said...

बहुत ही सामयिक व सटीक बात कविता के माध्यम से आपने कही है आपको बधाई

योगेन्द्र मौदगिल said...

बहुत ही सामयिक व सटीक बात कविता के माध्यम से आपने कही है आपको बधाई

nisha said...

dil ko chho jane wali kavita hai....dekh ke desh ka ye haal aur duniya ka aansu chhalak aate hain aankhon me kintu aapne samast bhavnao ko itne kum shabdo me vyakt kar ke anokha kaarya kiya hai....badhai

Jimmy said...

Bouth Aacha post


Shyari is here plz visit karna ji

http://www.discobhangra.com/shayari/romantic-shayri/

PREETI BARTHWAL said...

बिलकुल सच लिखा है। अच्छा लिखा है आपने।

Manuj Mehta said...

वाह बहुत खूब लिखा है आपने.

नमस्कार, उम्मीद है की आप स्वस्थ एवं कुशल होंगे.
मैं कुछ दिनों के लिए गोवा गया हुआ था, इसलिए कुछ समय के लिए ब्लाग जगत से कट गया था. आब नियामत रूप से आता रहूँगा.

Manuj Mehta said...

बहुत खूब, बहुत ही सटीक शब्द और व्यंग से परिपूरन.
आपकी कलम निरंतर चलती रहे यही प्रार्थना है.