जीवन की तपती दोपहर को
अपने प्यार की छाया देकर
मेरे दर्द को अपना कर लो।
जीवन की राह कठिन है
जलती रेत पर चलना मुश्किल
तुम छालों की इस जलन को
चंदन की शीतलता दे दो,
मेरे दर्द को अपना कर लो।
मन में क्रन्दन चल रहा प्रतिदिन
पल-पल प्रतिकूल होता प्रतिदिन
तुम अंतर्मन के इस पतझड़ को
सावन की हरियाली कर दो,
मेरे दर्द को अपना कर लो।
अंतर्मन में अंतर्द्वन्द्वों का
चल रहा भीषण समर
तुम जीवन के इस महासमर को
कृष्ण-सा सारथी दे दो,
मेरे दर्द को अपना कर लो।
यह पड़ाव मंजि़ल नहीं है
लक्ष्य हुआ ऑंखों से ओझल
तुम अमावस के इस तिमिर को
पूनम का उजियारा कर दो,
मेरे दर्द को अपना कर लो।
बेसुरे हैं तार जीवन के
साज भी है कुछ टूटा-फूटा
तुम जीवन के इस सितार को
अपने सुरों से सुरभित कर दो,
मेरे दर्द को अपना कर लो।
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सुनील आर. करमेले, इन्दौर
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