आज का दिन भी
ढल गया
फिर रात
गहराने लगी है
इसके बाद सुबह होगी
वह भी धीरे-धीरे
दोपहर, शाम और रात में
बदल जाएगी
इसी तरह
दिन पर दिन
कैलेण्डर पर तारीखें
बदलती रहेंगी
इन्हीं में से
कोई एक
मेरी अंतिम तारीख होगी
और दीवार पर मैं
एक तस्वीर बनकर
टंग जाऊँगा
आगे की
सभी तारीखों के लिए।
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Monday, October 13, 2008
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12 comments:
किसी दिन सब के साथ यही होना है। बहुत बढ़िया।
इसी तरह
दिन पर दिन
कैलेण्डर पर तारीखें
बदलती रहेंगी
इन्हीं में से
कोई एक
मेरी अंतिम तारीख होगी
सुनील बहुत ही गहरी पर सच्ची बात कह दी आपने, शानदार बिम्ब और गहरे मनोभाव से परिपूर्ण है यह रचने, मेरी बधाई स्वीकारें. लिखते रहिये.
kahe.n daraa rahe hai.n ji
satya
अच्छी कविता कही है आपने
साधुवाद स्वीकारें
जीवन का सबसे बडा सच मृत्यु.
great compostion
regards
बहुत गहरी बात कह लेने में आपका जवाब नहीं!
ओह,कितनी गहरी बात कह दी आपने, मन विरक्त हो गया।
ओह,कितनी गहरी बात कह दी आपने, मन विरक्त हो गया।
waah mahashaya waah
humein pata nahin tha such mein aap vinodi swabhaav ke saath hi itni gahan chintan waali prakhar buddhi bhi rakhte hain......hamari or se badhai ho itni bhavpoorna kavita ke liye.....mashaallah
आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी ने अपनी टिप्पणी कुछ इस प्रकार से मेल की .......
आओ साथ बाँट लें हम तुम आशीषों को मिल कर साथी
जो तुम सोचो उसको ही बस, जाए कलम मेरी दुहराती
आओ बढ़ कर हम हर लें अब पथ में छाया हुआ अंधेरा
मैं दीपक बन चलूँ, साथ दो तुम भी मेरा बन कर बाती.
शुभकामनाओं एवं धन्यवाद सहित
राकेश खंडेलवाल
आदरणीय राकेश जी, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ, आपकी टिप्पणी मेरा निश्चित ही उत्साहवर्धन करेगी।
सुनील आर.करमेले
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