Monday, October 13, 2008

कि‍सी दि‍न

आज का दि‍न भी
ढल गया
फि‍र रात
गहराने लगी है
इसके बाद सुबह होगी
वह भी धीरे-धीरे
दोपहर, शाम और रात में
बदल जाएगी
इसी तरह
दि‍न पर दि‍न
कैलेण्‍डर पर तारीखें
बदलती रहेंगी
इन्‍हीं में से
कोई एक
मेरी अंति‍म तारीख होगी
और दीवार पर मैं
एक तस्‍वीर बनकर
टंग जाऊँगा
आगे की
सभी तारीखों के लि‍ए।
.......................................

12 comments:

PREETI BARTHWAL said...

किसी दिन सब के साथ यही होना है। बहुत बढ़िया।

Manuj Mehta said...

इसी तरह
दि‍न पर दि‍न
कैलेण्‍डर पर तारीखें
बदलती रहेंगी
इन्‍हीं में से
कोई एक
मेरी अंति‍म तारीख होगी


सुनील बहुत ही गहरी पर सच्ची बात कह दी आपने, शानदार बिम्ब और गहरे मनोभाव से परिपूर्ण है यह रचने, मेरी बधाई स्वीकारें. लिखते रहिये.

कंचन सिंह चौहान said...

kahe.n daraa rahe hai.n ji

art said...

satya

योगेन्द्र मौदगिल said...

अच्छी कविता कही है आपने
साधुवाद स्वीकारें

RADHIKA said...

जीवन का सबसे बडा सच मृत्यु.

makrand said...

great compostion
regards

Vinay said...

बहुत गहरी बात कह लेने में आपका जवाब नहीं!

जितेन्द़ भगत said...

ओह,कि‍तनी गहरी बात कह दी आपने, मन वि‍रक्‍त हो गया।

जितेन्द़ भगत said...

ओह,कि‍तनी गहरी बात कह दी आपने, मन वि‍रक्‍त हो गया।

nisha said...

waah mahashaya waah
humein pata nahin tha such mein aap vinodi swabhaav ke saath hi itni gahan chintan waali prakhar buddhi bhi rakhte hain......hamari or se badhai ho itni bhavpoorna kavita ke liye.....mashaallah

Suneel R. Karmele said...

आदरणीय राकेश खंडेलवाल जी ने अपनी टि‍प्‍पणी कुछ इस प्रकार से मेल की .......

आओ साथ बाँट लें हम तुम आशीषों को मिल कर साथी
जो तुम सोचो उसको ही बस, जाए कलम मेरी दुहराती
आओ बढ़ कर हम हर लें अब पथ में छाया हुआ अंधेरा
मैं दीपक बन चलूँ, साथ दो तुम भी मेरा बन कर बाती.

शुभकामनाओं एवं धन्यवाद सहित

राकेश खंडेलवाल


आदरणीय राकेश जी, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूँ, आपकी टि‍प्‍पणी मेरा नि‍श्‍चि‍त ही उत्‍साहवर्धन करेगी।
सुनील आर.करमेले